इन दिनों मैं इस कोशिश में लगा हूं कि साधना ढांड पर मैं जो पुस्तक लिख रहा हूं वह जल्दी से जल्दी पूरा करूं क्योंकि कोई लम्बा वक्त हो चुका है मुझे इस काम को शुरू किये हुए । साधना की मानसिकता और इर्द-गिर्द की हलचलें और इन हलचलों का प्रभाव .. वह सब जो बीत चुका है .. उसकी परिणति और अभी जो गुजर रहा है .. उसके बारे में और आने वाले कल की संभावनाएं .. कुछ साधना के दृष्टिकोण से तो कुछ अपना नजरिया .. तो कुछ अपनो का नजरिया .. लेकिन लिखने का ये काम इतना आसान भी तो नहीं है । शायद मैं उतना चिंतित नहीं रहता लेकिन पिछले दिनों जो A4 size में लिखे 83 पेजेस कम्प्यूटर के हार्ड डिस्क से उड़ गये थे .. उनसे मैं विचलित हो गया था । विचलित होना तो स्वभाविक था .. लेकिन मैं हतोत्साहित नहीं हुआ । लगा हुआ हूं .. अब फिर से .. नये सिरे से । लेकिन अब इतना जरूर करता हूं कि सभी पेजेस के प्रिंट्स निकाल कर रख लेता हूं ।
- जेएसबी
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