The Book written by me

Jaane Kitne Rang ( in Hindi )

Tuesday, May 24, 2011

प्रयास ..

अंततः .. + - x / = zero .. यही लगता है .. कभी-कभी किसी दिशा में किया गया कोई प्रयास
किसी गमले में लगाये किसी पेड़ की तरह होता है, जिसके फैलाव की एक सीमा होती है । ऐसी
स्थिति किसी वृक्ष की तरह किसी को छांव नहीं दे सकती । फिर आप कोशिशें करते रहिये .. परिणाम
आयेगा - अंततः .. + - x / = zero ..

अप्रकाशित कविताएं ..

मेरी ऐसी ढेरों अप्रकाशित कविताएं हैं .. जिन्हें मैं ब्लाग में सहेज सकता हूं .. लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाता हूं ..
I have such numerous unpublished poems that I do not blog but I find I can save ..

मैं सोच रहा था ..

टेलिविजन पर
मैं
रास-लीला देख रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
कि .. जो मैं
किसी की तरफ देख भी लूं
तो
लोग
मुझे आवारा .. बेशरम .. लपूट .. चरित्रहीन ..
और न जाने .. क्या-क्या
कह देते हैं ..

इर्द-गिर्द ..

इर्द-गिर्द .. कुछ ऐसे भी लोग अनायास मिल ही जाते हैं .. जिन्हें आप किसी बात के लिये कोई महत्व दे दें या फिर किसी कारण विशेष के लिये आप उनकी प्रशंसा कर दें तो .. वे संभवतः किसी गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं और फिर उत्पन्न मानसिक विकार .. विकृत रूप लेकर आपको ही ये अहसास दिलाने की चेष्टा करने लगता है कि आप उसके सामने कुछ भी नहीं हैं .. किसी तुच्छ स्थिति का आभास दिलाते हुए .. फिर वे .. अधिकांशतः या तो वहीं रूक जाते हैं या फिर विकासोउन्मुख न होकर शनैः-शनैः पतन की दिशा में जाने लगते हैं ..

मैं सोच रहा था ..

किसे
फूलों के खिलने से
और
भौंरों की गुंजन से
परहेज
हो सकता है ..
मैं सोच रहा था ..

दुख और आश्चर्य ..

मुझे इस बात पर दुख और आश्चर्य होता है कि कोई अपने मोबाइल फोन बंद रखता है । किसी आते अवसर से ज्यादा शायद उन्हें आराम पसंद है ..

परेशानियां ..

मैंने महसूस किया है कि ऐसे कई हैं जो मानसिक विकार से पीड़ित हैं .. लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम या फिर मालूम भी है तो इस बात के लिये तैयार नहीं होते कि उन्हें कोई बिमारी है .. और उन्हें इसका इलाज करा लेना चाहिये .. और ये जरूरी भी है इसलिये कि जाने-अनजाने वे नुकसान उठाते हैं .. स्वयं भी और इर्द-गिर्द भी कई परेशानियां पैदा करते हैं ..

मैं सोच रहा था ..

वो बातें कर रहे थे ..
कि
वो करते हैं रास-लीला ..
उनकी तो माया ही अलग है
तो दूसरे ने कहा –
कि
मैं जो देख भी लूं ..
तो कहते हैं
कि देखो कैसा आवारा है ..
मैं बातें सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

कई सारे ख्वाब हैं मेरे अंदर ..

कई सारे ख्वाब हैं मेरे अंदर .. और कुछ शब्दों में अभिव्यक्त हैं लेकिन सीधे-सीधे नहीं .. इसलिये नहीं कि .. मुझमें साहस नहीं है अभिव्यक्त करने का .. बल्कि इसलिये कि मेरे ऐसा करने से मेरे ख्वाब आहत हो सकते हैं .. अन्दर से भी और .. शायद बाहर से भी .. । बाहर तो छोड़िये .. मैं अपने अंदर की बात की प्रस्तुति के लिये भी .. रेखा और रंग का सहारा भी तो इसलिये नहीं ले सकता कि कोई समझ न जाये क्योंकि मेरे ऐसा करने से कोई दूसरा सार्वजनिक हो सकता है .. जो मुझे भी और फिर शायद .. मेरे ख्वाबों को भी तो .. पसंद नहीं है ..

विचारों की आवारागर्दी ..

विचारों की आवारागर्दी तो देखो कि - कभी-कभी सोच तो नहीं मालूम कहां-कहां चली जाती है .. ये तो अच्छा है कि कोई ये नहीं जान पाता कि मैं क्या सोच रहा हूं .. और ये बात मुझे गजब का सुकून देती है और मैं फिर से सोचने लग जाता हूं ..

शायद .. असंभव के करीब की स्थिति ..

साक्षात्कार में .. किसी मंच पर - सिद्धांतो की बातें करना .. आध्यात्म .. दर्शन .. सहानुभूति .. मानवता .. संवेदनशीलता .. जैसे विषयों पर बढ़चढ़ कर बोलना और यथार्थ में वैसा ही होना .. शायद असंभव के करीब की स्थिति है ..