The Book written by me

Jaane Kitne Rang ( in Hindi )

Sunday, February 21, 2010

the impressive lines ..


Have a unique character like salt - its precence is not felt when
quantity is right .. but its its absence makes things testless ..


I came across these lines ..
I thought unavoidable to share with you ..

Wednesday, February 17, 2010

अभिव्यक्ति ..

कई ऐसे डाक्टर हैं जिनका चिंतन प्रभावशाली व तारीफ के काबिल है । यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं स्वयं पेशे से एक डाक्टर हूं इसलिये डाक्टर की तारीफ कर रहा हूं .. कतई ऐसा नहीं है ।
मेरे एक मित्र हैं जो पेशे से चिकित्सक हैं .. वे उस दिन ऐसे ही किसी बात पर कह रहे थे - अपने देश में ये जो बाबूओं का राज है वह आज की स्थिति में शरीर में होने वाली डायबिटिज़ जैसी बीमारी की तरह घातक है .. । मैं उनके इस अवलोकन .. इस पैनी निगाह पर सोच रहा था ।
मैं अहा ज़िदगी का फरवरी 2010 का अंक पढ़ रहा था । उसमें पृष्ठ 82 में डा अरविन्द नेराल का पत्र-लेख 'आज में जीना सिखो निन्नी' पढ़ा । पढ़कर मुझे अच्छा लगा । मैं उन्हें सेल-फोन पर SMS कर बधाई दूंगा ।
मैं अपनी मानसिकता की बात कर रहा हूं कि .. चाहे कोई भी व्यक्ति हो या फिर वह कोई भी प्रोफेशन का हो .. अपने अन्दर की अनुभूति को यदि व्यक्त करने की आदत यदि उसमें है तो वह मेरी नजर में प्रशंसनीय है .. उसके अभिव्यक्ति का माध्यम फिर कोई चाहे कोई भी हो .. कविता हो या फिर लेख या फिर चित्र या फिर म्यूज़िक . । जो किसी अभिव्यक्ति को व्यक्तिगत होने की टिप्पणी देते हैं उनसे मेरा सनम्र निवेदन है कि किसी अभिव्यक्ति को आप इस नज़र से देखें कि हो सकता है कि किसी का कोई अनुभव आपके किसी काम आ जाये और तब उस स्थिति में ऐसी अभिव्यक्ति की साथर्कता का अहसास आप कर सकते हैं । जो सही है उसे कहने व लिखने में कोई संकोच नहीं है । लिखते समय केवल एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि कोई व्यक्तिगत टिप्पणी किसी के लिये कभी न हो और ऐसा किसी को भी नहीं करना चाहिये .. मैं ऐसा सोचता हूं .. ।

Wednesday, February 10, 2010


इन दिनों मैं इस कोशिश में लगा हूं कि साधना ढांड पर मैं जो पुस्तक लिख रहा हूं वह जल्दी से जल्दी पूरा करूं क्योंकि कोई लम्बा वक्त हो चुका है मुझे इस काम को शुरू किये हुए । साधना की मानसिकता और इर्द-गिर्द की हलचलें और इन हलचलों का प्रभाव .. वह सब जो बीत चुका है .. उसकी परिणति और अभी जो गुजर रहा है .. उसके बारे में और आने वाले कल की संभावनाएं .. कुछ साधना के दृष्टिकोण से तो कुछ अपना नजरिया .. तो कुछ अपनो का नजरिया .. लेकिन लिखने का ये काम इतना आसान भी तो नहीं है । शायद मैं उतना चिंतित नहीं रहता लेकिन पिछले दिनों जो A4 size में लिखे 83 पेजेस कम्प्यूटर के हार्ड डिस्क से उड़ गये थे .. उनसे मैं विचलित हो गया था । विचलित होना तो स्वभाविक था .. लेकिन मैं हतोत्साहित नहीं हुआ । लगा हुआ हूं .. अब फिर से .. नये सिरे से । लेकिन अब इतना जरूर करता हूं कि सभी पेजेस के प्रिंट्स निकाल कर रख लेता हूं ।

- जेएसबी

Monday, February 1, 2010


01 फरवरी 2010 । सोमवार ।

साहबियत पर
बड़े साहब की
लिखी कविता
की
तारीफ कर रहे
किसी
छोटे साहब के टेबल पर
शोभायमान कैंची
को देखकर
छोटे साहब
और
कैंची
की फितरत पर
मैं सोच रहा था ..

- जेएसबी