this is all about the articles .. books .. paintings .. sketches .. thoughts and my experiences - DR JSB NAIDU
Thursday, January 28, 2010
ज्योतिष और शास्वत सत्य - अच्छी जिंदगी जीने की चाहत किसे नहीं होती .. और फिर ऐसी ही किसी स्थिति को प्राप्त करने के लिये लोग ज्योतिष का सहारा लेते हैं । यही वजह है कि ज्योतिष एक ऐसा धंधा है जिसे दुनिया की किसी मंदी का कोई असर न तो कभी पड़ा है और न ही कभी पड़ सकता है और यह एक शाश्वत सत्य है .. ।
- जेएसबी
Wednesday, January 27, 2010
यह काफी दिन पहले की बात है । किसी शीर्ष ने मुझसे कहा कि उसे अपनी ऊंचांई पर नाज़ है .. और उसने आगे कहा कि उसके इस फख़्र में वह पूरी शिद्दत से पहली सीढ़ी को भी शामिल करता है .. । मैंने सुना और उससे कहा कि उसकी यह सोच उसे इस उंचांई पर लेकर जायेगी जहां से आज या वतर्मान बौना दिखाई देगा । .. और मेरा यकीन मानिये कि मेरी तब की कही हुई वह बात आज हकीकत के रूप में मेरे सामने है । यह तो वक्त की जरूरत है कि मैं उस शीर्ष का उल्लेख नहीं कर सकता लेकिन इस बात से आपको अवगत कराना अपना कर्तव्य समझता हूं .. ।
- जेएसबी
Sunday, January 24, 2010
Sunday, January 17, 2010
17 जनवरी 2010 । रविवार । 09.45 बजे । रात में ।
निःशब्द है
वातावरण ..
और
स्पंदन ही तो हैं
जो आभास कराते हैं
कि वक्त जिंदा है ..
मुझे मालूम है
कि
वक्त तो .. अभी कोमा में है ..
लेकिन
अनिश्चित अवधि की यह
अस्थाई स्थिति है
और
फिर ..
यह भी निश्चित है .. कि
बाहर निकल आयेगा .. वक्त
किसी दिन .. कोमा से .. अचानक ..
और फिर मुस्करायेगा ..
मुझे
इंतजार है
बेसब्री से .. उस दिन का
और
वक्त भी शायद बेबस .. लेकिन अधीर है ..
- डा. जेएसबी नायडू
Tuesday, January 12, 2010
प्रति वर्ष, डा. अशोक भट्टर के नये साल पर भेजे जाने वाले बधाई संदेश के असामान्य प्रस्तुति का मुझे बेसब्री से, हमेशा इंतजार रहता है । नये वर्ष के बधाई संदेश के साथ-साथ किसी न किसी thoughtful message का विवरण उनके बधाई संदेश में पढ़ने को मिलता ही है । उनके इस thoughtful attempt से मैं सदैव ही प्रभावित रहा हूं । पेशे से शिशु रोग चिकित्सक होने के साथ-साथ .. उनके ट्यूबुलर विज़न से परे होकर स्थापित इस सोच का .. मैं सम्मान करता हूं ।
- डा. जेएसबी नायडू
Sunday, January 10, 2010
मेरे एक मित्र हैं, जो नाक-कान-गला विशेषज्ञ हैं .. । यह उस दिन का वाक्या है जब हमारी मुलाकात किसी के गृह-प्रवेश कार्यक्रम में हुई थी .. । कुछ लोगों के साथ वे भी खड़े-खड़े बतिया रहे थे । वे बातों ही बातों में किसी से कह रहे थे - " अब आपको उम्र के इस पड़ाव पर तो आकर सोचना चाहिये .. आप इतना क्यों बोलते हैं .. माना कि ईश्वर ने आपको नाक भी दिया व कान भी और गला या आवाज भी .. दिया है लेकिन आपको बोवना कम से कम चाहिये .. सारी तकलीफों की जड़ तो यही है .. आप सुना ज्यादा करिये और बोला तो बिल्कुल भी कम "
शारीरिक इलाज करते-करते आप तो बड़ी सार-गर्भित बातें कह गये हैं .. वहीं खड़े किसी व्यक्ति का कमेंट था । पास में खड़े किसी दूसरे सज्जन ने कहा - डा. साहब आप बिल्कुल ठीक कहते हैं .. आपकी ये बातें .. बीते हुए कल व आज के साथ-साथ आने वाले कल के संदर्भ में भी सत्य व सामयिक प्रतीत होती है । अगले दिन सुबह-सुबह अखबार हाथ में लेते ही मित्र की कही हुई वह बात याद आ गई .. ।
सोचा आपको भी बताता चलूं .. ।
- डा. जेएसबी नायडू ।
Friday, January 8, 2010
08 जनवरी 2010 । शुक्रवार ।
मैं सोचा था कि मेरे ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त किये सभी को अलग- अलग अभिव्यक्त करूंगा लेकिन शायद इसे मेरी अपरिपक्वता कहूं या जो कुछ भी .. जैसा भी आप समझें .. कि मैं ब्लाग की इस दुनिया में नया-नया हूं इसलिये संबंधित तकनिकी जानकारी का अभाव है अतः मैं सभी से क्षमा मांगता हूं कि चाहकर भी उन्हें मैं उनके ब्लाग में जाकर सही ढंग से टिप्पणी नहीं कर पा रहा .. और इसलिये सभी के लिये संयुक्त रूप से मैंने लिखा है -
मेरे ब्लाग पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर अच्छा लगा .. । भविष्य में भी ऐसा ही मार्ग-दर्शन व सहयोग आपसे प्राप्त होता रहेगा ऐसी आशा करता हूं । नये वर्ष की ढेर सी शुभ-कामनाएं .. ।
सादर ..
- डा. जेएसबी नायडू ।
Thursday, January 7, 2010
07 जनवरी 2010 । गुरूवार ।
भाग्य ज्योतिष के पास नहीं मिलता ..
आपके किये गये कर्म आपके भाग्य के निर्माता हैं, कुंडली नहीं । सबसे महत्वपूर्ण है तो उपरी माले में स्थित आपका दिमाग । आपकी सोच .. आपका निर्णय .. आपके तकदीर की दिशा तय करता है । जो व्यक्ति किसी ज्योतिष के पास जाकर अपनी जिंदगी की दिशा तय करते हैं वे शायद यह भूलते हैं कि दम तो पुरूषार्थ में है .. ज्योतिष की कही बातों में नहीं .. क्योंकि दुनिया के सभी बड़े-बड़े .. महान लोग किसी ज्योतिष के मार्गदर्शन से महान नहीं बने हैं बल्कि सही वक्त पर किया किया गया उनका कर्म है जिसने उनको इतिहास में महान रूप में स्थापित किया है । दोष ज्योतिष या फिर ज्योतिष शास्त्र में नहीं है .. बल्कि व्यक्ति की सोच में है और जो आलसी है वह बिना कर्म किये कैसे सफलता प्राप्त कर सकता है । इस सत्य को कैसे कोई नकार सकता है कि परीक्षा में पास होने के लिये परीक्षा में बैठना जरूरी है .. ।
मैं तो कर्म की प्रधानता पर विश्वास करता हूं ..
- डा. जेएसबी नायडू
Wednesday, January 6, 2010
06 जनवरी 2010 । बुधवार ।
आज सुबह मैंने अपने कमरे के बाहर कुछ व्यक्तियों को आपस में बात करते सुना -
एक - अपनी जिंदगी तो जैसी भी है .. यार ठीक है । मैं तो उससे संतुष्ट हूं .. ।
कोई दूसरा - लेकिन जैसे लगता है कि मैं तो कुछ कर ही नहीं पाया हूं .. अपना हाल तो आधे खाली गिलास जैसा है । पहला - यार तुम्हारी तो सोच ही निगेटिव है .. तुम्हारी सोच में नकारत्मकता है । तुम तो आधे खाली गिलास को लेकर डिप्रेशन में हो और मुझे देखो मैं तो सोचता हूं हमेशा सकारात्मक .. एकदम पाजीटिव थिंकींग .. । मुझे फिर किसी तीसरे व्यक्ति की आवाज सुनाई दी .. जिसके सोचने का तरीका एकदम अलग था .. वह कह रहा था - तुम लोग भी क्या निगेटिव और पाजीटिव के चक्कर में हो .. यार, गिलास के आधे खाली का यह क्या मतलब निकाल रहे हो कि .. ऐसी सोच नकारात्मक है .. कतई नहीं इस स्थिति को सकारात्मकता में लेना चाहिये .. गिलास के आधे खाली हिस्से को हमें भरना है .. पाजीटिव सोच के ऐसे आयाम को जगह दो .. न कि आधे खाली गिलास का रोना रोओ .. ।
उनके वातार्लाप को सुनकर मुझे लगा कि ब्लाग में इस बात को जरूर लिखना चाहिये .. ।
- डा. जेएसबी नायडू
Tuesday, January 5, 2010
Monday, January 4, 2010
Sunday, January 3, 2010
03 जनवरी 2010 . रविवार .
कुछ युवाओं को मैंने बातें करते हुए सुना - हमें तो वही कैरियर चुनना चाहिये जो हमको पसंद हो । जबकि मेरे माता-पिता सख्त खिलाफ हैं इस बात के लिये कि मैं उनकी बात नहीं मानकर जिद लिये बैठा हूं कि मैं तो अपना कैरियर किसी और ही फिल्ड में बनाना चाहता हूं । मैंने तो अपने डैड से कहा कि आप अपने अनुभव से सोचते हैं जिसमें आपकी परिस्थितियां शामिल रही होंगी । फिर मैंने उनको एक अखबार पढ़ाया जिसमें किसी कामयाब व्यक्ति की कही हुई बात लिखी थी कि मैं आज कामयाबी के उंचे धरातल पर हूं जबकि मेरे पिता ने मेरे स्कूल के दिनों में ही इस फिल्ड में जाने के लिये मना किया था और नाराजगी जताई थी । लेकिन पिता के विरोध के बावजूद मैंने ऐसा किया और देखो अब मैं कितना सफल हूं ।
मैं सोच रहा था कि इक्के-दुक्के उदाहरण को लेकर कोई अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश अवश्य कर सकता हैं । लेकिन शायद यह समझना भी जरूरी है कि हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा कामयाब बनें और उसकी जिंदगी में कम से कम प्रतिरोध आये इसलिये उनकी इस भावना को बिना सोचे-समझे अपमानजनक ढंग से ठुकराकर गैरवाजिब, अप्रासंगिक व बेसिरपैर का कहना बुद्धिमानी नहीं है । आप किसी रास्ते से जाकर कोई आरामदायक स्थिति को प्राप्त कर और फिर अपने शौक को पूरा कर सकते हैं । फिल्मों में प्रसिद्ध चिकित्सक व खेल के क्षेत्र में सफलता हासिल करने वालों को नहीं भूलना चाहिये कि किसी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के बाद अपने मनचाहे कैरियर में जाकर उन्होने कामयाबी हासिल की ।
मैंने इसी विषय पर किसी उम्र दराज से बात किया तो उनका कहना था - किसी मंजिल को प्राप्त करने के बाद फिर यदि कोई अपने शौक पर जा टिकता है और वहीं कामयाबी के नये आयाम स्थापित करता है तो यह शायद ज्यादा अक्लमंदी की बात होगी ।
सोच के इस आयाम को भी तो नकारा नहीं जा सकता .. ।
Saturday, January 2, 2010
02 जनवरी 2010 . शनिवार ।
आज कोई लेख लिखते हुए मुझे यूं ही याद आ गया कि किसी ने कभी मुझसे पूछा था कि आपको कौन सा रंग पसंद है और फिर मेरे उत्तर की प्रतिक्षा किये बगैर ही मुझे अवगत कराया गया कि उन्हें तो लाल रंग पसंद है लेकिन नीला रंग नहीं । दृढ़ता किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है । दृढ़ता शरीर की बढ़ी हुई उम्र में होती है लेकिन बचपन तो लचीलापन लिये हुए होता है । प्रकृति में लाल रंग के फूल भी हैं और पेड़ों का रंग हरा है व वहीं आकाश का नीलापन भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है । प्रकृति के इन संकेतो को नजरअंदाज करना शायद बुद्धिमानी नहीं है ।